- योगेंद्र माथुर
नाग अर्थात सर्प को भगवान शिव का कंठहार माना गया है और सनातन धर्म में नाग पूजा की परंपरा पौराणिक है।
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी के रूप में मान्यता प्राप्त है और इस दिन नाग पूजा का विशेष महत्व माना गया है। उज्जयिनी अर्थात उज्जैन भगवान शिव की नगरी है और यहां मृत्युंजय भगवान महाकाल स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्वरूप में अधिष्ठित हैं। अतः यहां नाग पूजन का महत्व और अधिक बढ़ गया है।
यहां विश्वप्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर श्री नागचंद्रेश्वर का अनूठा मंदिर है जो वर्ष में केवल नागपंचमी के दिन ही खुलता है और दर्शनार्थियों को 24 घंटे लगातार भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन होते हैं।
इस नागचंद्रेश्वर मंदिर में दीवार में 11वीं शताब्दी की परमार कालीन शिव प्रतिमा स्थापित है। छत्र रूप में सर्प का फन फैला हुआ है और इस सर्प के आसान पर भगवान शिव व मां पार्वती अपने पुत्र भगवान श्रीगणेश के साथ विराजित हैं। समीप ही उनका वाहन नंदी वी सिंह भी विराजित हैं। भगवान शिव के गले व भुजाओं में भी सर्प लिपटे हुए हैं। इसी मान्यता है की श्री महाकालेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार के समय यह प्रतिमा नेपाल से मंगाई गई थी।
नागपंचमी पर यहां दर्शन के लिए देशभर से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। भव्य महाकाल मंदिर के शीर्ष पीआर स्थित इस मंदिर में पहुंचने के लिए बना प्राचीन मार्ग अत्यंत संकरा है। अतः विगत कुछ वर्षों से यहां प्रशासन द्वारा मंदिर के बाहरी हिस्से में लोहे का अस्थायी फोल्डिंग चढ़ाव व पुल का निर्माण कर दर्शनार्थियों को दर्शन हेतु सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है।
प्रतिवर्ष मंदिर के पट नागपंचमी की पूर्व रात्रि 12 बजे श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले जाते हैं। 24 घंटे लगातार दर्शन के उपरांत नागपंचमी की रात्रि 12 बजे मंदिर के पट पुनः साल भर के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
नागपंचमी पर मंदिर में त्रिकाल पूजा होती है। नागपंचमी की पूर्व रात्रि 12 बजे पट खुलने के पश्चात पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत व प्रशासन के अधिकारी प्रथम पूजा करते हैं। नागपंचमी पर दोपहर को 12 बजे शासन की ओर से शासकीय पूजा की जाती है। इसी दिन रात्रि 8 बजे संध्या आरती के उपरांत मंदिर प्रबंध समिति की ओर से महाकाल मंदिर के पुजारी व पुरोहित श्री नागचंद्रेश्वर भगवान की पूजा करते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार सर्पराज तक्षक में भगवान शिव की यहां कड़ी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर अमरता का वरदान प्राप्त कर लिया था। इसी मान्यता है की भगवान शिव से अमरता का यह वरदान प्राप्त होने के बाद से ही तक्षक नाग यहां विराजित हैं। समय समय पर यहां श्रद्धालुओं को इनके दर्शन होते रहे हैं।