लंदन : वातायन-यूके, हिंदी राइटर्स गिल्ड और वैश्विक परिवार द्वारा आयोजित एक नई श्रृंखला दो देश दो कहानियाँ की शुरुआत डॉ हरीश नवल जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई जिसमें दो जानी मानी और पुरस्कृत लेखक: डॉ सुमन घई (अमेरिका) और तेजेंदर शर्मा (ब्रिटेन) ने अपनी कहानियाँ प्रस्तुत की। वातायन की संस्थापक, दिव्या माथुर जी के सुन्दर संयोजन, आशीष मिश्रा जी के संक्षिप्त स्वागतभाषण और डॉ शैलजा सक्सेना जी के कुशल संचालन के कुशल संचालन में इस संगोष्ठी की सफलता निश्चित ही थी सो विद्वान जनों की प्रखर उपस्थिति में कार्यक्रम की शुरुआत की गयी।
डॉ.सुमन घई जी ने अपनी कहानी पगड़ी" का पाठ बेहद ठहराव और रोचकता से किया। आपकी कहानी बेहद सजीव चित्रात्मकता के साथ हमारी आँखों में चित्रित होती रही।
आपकी कहानी का मूल स्वर प्रवासी मन दो देशों की संस्कृति के बीच गिरते-पड़ते अपनी संस्कृति को पगड़ी के रूप में सर पर सहेज लेता है। कहानी के किरदारों के संवाद बेहद सजीव लग रहे थे। 'ये तो हमारे देश की बेटी है,हमारी पोती, बेटी या बहन कुछ भी हो सकती है दूसरी कहानी 'मैं भी तो ऐसा ही हूँ का वाचन तेजेंदर शर्मा जी ने किया। जैसा कि कहानी का शीर्षक स्वयं कह रहा कि आज के समय में जो हो रहा है चाहे मूल्यवान या बेकार चूंकि हम उस स्थिति दर्शक तो मन कुछ अपनी पहचान खोने सा लगता है। लेखक की वाचन शैली इतनी जीवंत और संवादात्मक थी कि नाटक देखने जैसा दृश्य हमारे मानस पटल पर बनता रहा। परदेस में रहकर अपने देश की बातों का जिक्र करना लेखक के लिए तो रोचक होगा ही, हमारे लिए सुनना बेहद रुचिकर रहा। आप दोनों लेखकों का आदर के साथ धन्यवाद और शुभकामनाएँ। ज्ञापित करती हूँ।
दोनों कहानियों पर समीक्षात्मक टिप्पणी के रूप में आदरणीय हरीश नवल जी ने अपना वक्तव्य रखा जो दोनों लेखकों के लेखन और कहानियों की बारीकियों को खूब उजागर कर गया। नवल जी ने कहानी में आए विशेष कथन और वाक्यों को तो रेखांकित किया ही था अपितु एक-एक शब्दों के अर्थदार परतों को भी खोलकर उनका सुंदरता से बखान किया तो हमारा साहित्य रचना के प्रति नजरिया और पुख्ता हो सका। अंत में कल्पना मनोरमा ने संगोष्ठी में आये सभी विद्वानों के प्रति आभार प्रकट करते हुए गोष्ठी का समापन किया।
श्रोताओं में विश्व भर के लेखक और विचारक सम्मिलित हुए, जिनमें प्रमुख हैं:पद्मेश गुप्त,डॉ, शैल अग्रवाल, आराधना झा, आदेश पोद्दार, अरुणा अजित सरिया, प्रो टोमियो मिज़ोकामी, अरुणा सब्बरवाल,डॉ.तातिअना ओरान्स्किया,नारायण कुमार जी,प्रो जगदीश दवे, डॉ मनोज मोक्षेन्द्र, डॉ अरुण अजितसरिया, आशा बरमन, कप्तान प्रवीर भारती, डॉ आरती स्मित, अरुण सभरवाल, इत्यादि. अंत में पुन: सभी को अनेक शुभकामनाएँ।
कल्पना मनोरमा
अध्यापक एवं लेखक