राजगढ़ (धार) । श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की महिमा आलौकिक व अपरम्पार है । जहां जहां चातुर्मास चल रहे है या साधु-साध्वी भगवन्तों का योग बना हुआ है वहां ओर श्री पार्श्वनाथ प्रभु के समस्त तीर्थो पर श्रावण वदी 9 से 11 तक त्रिदिवसीय श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ अट्ठम तप की आराधना की जा रही है । वैसे तो प्रभु का जन्म पौष वदी 10 को हुआ था एवं पौष वदी 11 को दीक्षा कल्याणक होता है उस समय पौष वदी 9 से 11 तक अट्ठम तप आराधना की जाती है पर चातुर्मास काल में इन तिथियों पर अट्ठम तप की आराधना के लिये विशेष महत्व माना गया है । आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने कुमारपाल राजा को प्रतिबोधित किया था । आपने 24 तीर्थंकरों की स्तुतियों की रचना 12 वीं शताब्दी में की थी । उन सभी स्तुतियों के माध्यम से आराधना हम वर्तमान में भी कर रहे है । आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने जब श्री पार्श्वनाथ भगवान की स्तुति की तो उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली थी । हमें जिन मंदिर में प्रभु के दर्शन करने के साथ अन्तर चक्षु से स्वयं के आत्मदर्शन करना चाहिये । अमीर हो या गरीब परेशानी सभी के जीवन में आती है । कीचड़ में पैर खराब होने पर हम पैरों को धोने के लिये चिन्ता करते है पर आत्मा की मलिनता साफ करने की हम बिल्कुल भी चिन्ता नहीं करते । समुद्र, आकाश, मानव का पेट ओर श्मशान के गड्ढे का कोई अंत नहीं होता है । गुरु तत्व ने ही महाराजा कुमारपाल के जीवन का उद्धार किया था । उक्त बात श्री राजेन्द्र भवन राजगढ़ में गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कही । आपने कहा कि हमें जिन मंदिर की 84 आशातनाओं से हमेंशा बचने का प्रयास करना चाहिये । प्रभु के समक्ष रोना भी आशातना की श्रेणी में आता है । आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. प्रभु से प्रार्थना करते हुये कहते है कि प्रभु आपको कमठ ने उपसर्ग देने में व धरणेन्द्र पद्मावती ने उन उपसर्गो से बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर आपने अपनी वृति के कारण दोनों के प्रति कल्याणकारी समदृष्टि व समभाव रखा । साधना में समदृष्टि रखना होगी तभी सफलता ओर सिद्धि की प्राप्ति होगी । साधक को अट्ठम तप के साथ जप करके साधना की शक्तियों को प्राप्त करना चाहिये । विकार से अविकार की ओर हमारा जीवन परिवर्तित हो तभी हमें सद्गति प्राप्त होगी । परमात्मा के साथ किया गया अविरल प्रेम ही हमारा कल्याण करेगा । यह प्रेम निर्दोष होना चाहिये । श्री पार्श्वनाथ प्रभु की अट्ठम तप आराधना तीनों लोको में तुरन्त फलदायी मानी गयी है । आज से 4 अगस्त तक अट्ठम तप आराधना का आयोजन श्री मथुरालालजी प्यारचंदजी मोदी परिवार की ओर से चल रहा है । उक्त आराधना में बड़ी संख्या में आराधक जुडे है ।
Most Reading
-
भगवान शिव हर तरह की इच्छाओं की पूर्ति करने वाला मंशा महादेव व्रत कल यानि 1 अगस्त सोमवार से आरंभ हो रहा है। राजगढ़ व आसपास के क्षेत्रों में ...
-
मनोरंजन । सोशल मीडिया पर हिंदी फिल्मों के प्रतिष्ठित अभिनेता गोवर्धन असरानी को लेकर मंगलवार को एक अचानक अफवाह फैल गई, जिसमें उनके निधन क...
-
राजगढ(धार) - प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी 07 जनवरी 2022 से 11 जनवरी 2022 तक 5 दिवसीय गुरूसप्तमी महामहोत्सव का आयोजन श्री मोहनखेडा महातीर्थ पर...
-
यदि आपने कुछ करने की हिम्मत है तो इस फील्ड में आप कुछ भी कर सकते हो बस आपको धैर्य के साथ काम करना होगा फिर मंजिल तक पहुंचने के लिए दुनिय...
-
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज प्रदेश के विद्यार्थियों के हित में महत्वपूर्ण घोषणाएँ की हैं। उन्होंने कहा कि माध्यमिक शिक्षा मण्ड...