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मृत्यु शाश्वत सत्य है: आचार्य ऋषभचन्द्रसूरि



 म.प्र. राजगढ़ (धार) । दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पाट परम्परा के अष्ठम पट्टधर वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि मृत्यु एक शाश्वत सत्य है फिर भी मनुष्य जीवन भर इस तथ्य की अनदेखी करता है । शरीर मरणधर्मा हैं, फिर भी इसका मोह पालता है । अवस्थाऐं परिवर्तन शील हैं। बचपन, जवानी, बुढापा यह जीवन का क्रम है । शरीर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने का माध्यम है अतः इसकी सुरक्षा करना चाहिए।

इंसान के सामने आज की परिस्थितियां बड़ी विचित्र हैं । कभी सोची नहीं थी उससे भी बदतर है । गले लगाने में और किसी को भी छुने में भी डर लगता है । कोरोना एक भी व्यक्ति को हो गया तो पूरे परिजनों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट जाता है । पूरा मोहल्ला लोकडाउन जैसा हो कर चर्चित हो जाता हैं व वहा कि सीमाऐं सील कर दी जाती है । तन को बचाना है, या धन को बचाना है ? सामाजिक सबंधों को सुधार कर रखें कि शरीर को । रामचन्द्र जी को 14 साल का वनवास हुआ उसी तरह से 14 दिन व्यक्ति को घर के अन्दर रहना पड़ता है । ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति पीड़ित के रिलेटिव होने पर भी इंसान दूरियां बना लेता है । इधर उधर से भागकर भले ही इंसान चलकर घर पहुंच जाए तो गांव व मोहल्ले के लोग उसे घर में नहीं घूसने देते है । डाॅक्टर के प्रमाणीकरण के बाद भी 14 दिन का एकांतवास को वनवास की तरह बिताने पडते हैं । परमात्मा सभी को इस संकट मुक्त करें ।

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