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कहानी सच्ची है-रेडियो स्कूल और डिजीलेप ग्रुप्स से अपने बच्चों को पढ़ाती है वंदना पंथी

  पुराने भोपाल की घनी बस्ती की एक तंग गली में रहने वाली वंदना पंथी आजकल अपने बच्चों को यह कहकर घर में ही पढ़ाती है कि ‘‘कोरोना को हराना है - घर में ही पढ़ना और पढ़ाना है। चलो समय हो गया, रेडियो और वाट्सएप शिक्षकों का’’।
 वंदना एक माँ हैं, जिसका इन दो बच्चों के सिवाय कोई नहीं है। कच्ची उम्र में दो बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी जब अकेली माँ पर आन पड़ी थी, तो पहले तो वह घबराई, पर हिम्मत कर अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाने में जुट गई। कमजोर आर्थिक हालात में कुछ खर्चे कम हो जायें, ये सोचकर बच्चों को शासकीय हबीबिया विद्यालय स्थित सर्व शिक्षा अभियान के बालक छात्रावास में प्रवेश दिला दिया और खुद रोजी-रोटी की मशक्कत में लग गई। वंदना का बेटा लोकेश कक्षा 8 में और हिमेश कक्षा 4 में पढ़ रहा है।
 कोरोना में लॉकडाउन में सर्व शिक्षा अभियान का बालक छात्रावास बंद कर दिया गया। बालक लोकेश और हिमेश भी अपने घर अपनी माँ के पास आ गए। माँ ने दोहरी भूमिका में काम करना शुरु कर दिया। बच्चों के लालन-पालन कर माँ का फर्ज निभाया और शिक्षिका बनकर उन्हें पढ़ाया।।
 वंदना की दिनचर्या में रोज सुबह 10 बजते ही उसके मोबाईल पर डिजीलेप (DigiLEP) यानि डिजीटल लर्निंग इनहेंसमेंट प्रोग्राम या दक्षता संवर्धन कार्यक्रम में बनाये गए व्हाट्सएप ग्रुप में बच्चों के लिये कक्षावार कार्यक्रमों को बच्चों को दिखाना-समझाना और फिर 11 से 12 बजे तक रेडियो लगाकर शैक्षिक कार्यक्रम ‘‘रेडियो स्कूल’’ का प्रसारण सुनवाना शामिल है। रेडियो और मोबाईल के इन कार्यक्रमों में जो बताया गया, उसके आधार पर कुछ अन्य शैक्षिक गतिविधियाँ भी वंदना अपने बच्चों से करवाती हैं। इसके अलावा, रोज एक पाठ मौखिक पढ़वाना और एक-एक पेज हिन्दी और अंग्रेजी का शुद्ध लेखन करवाना भी वंदना की शिक्षकीय भूमिका में शामिल है।
वंदना कहती हैं, ‘‘ लोकेश और हिमेश मेरे भविष्य हैं। इन्हीं के लिये तो जी रही हूँ। खुद दिन भर मेहनत कर कुछ जोड़ती हूँ, तो इन्हीं के लिये। अपने से दूर होस्टल में रखकर पढ़ा रही हूँ, तो इसलिये कि घर से अच्छा खाना, पहनना और पढ़ना वहाँ मिल जाता है। कोरोना लॉकडाउन के समय होस्टल बंद होने से मैं तो इनको इतने अच्छे से नही पढ़ा पाती। भला हो सरकार का जिसने ये रेडियो स्कूल और डिजीलेप कार्यक्रम शुरु कर दिये। इसको देख-सुनकर मैं अपने बच्चों को घर पर भी अच्छे से पढ़ा पा रही हूँ। एक ही आशा है कि ये कोरोना जल्दी खत्म हो जाये, मेरे और सबके बच्चे कुशलता से रहें और खूब पढ़े, अपनी माँ की आशाओं को पूरा करें।

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