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जैन समुदाय ने जताया प्रधानमंत्री का आभार,केंद्र सरकार द्वारा प्राकृत भाषा शास्त्रीय भाषा घोषित

 






  जयपुर (राजस्थान) l प्राकृत भाषा भारत की एक प्राचीन भाषा है जिससे भारत की अन्यान्य भाषाओं और बोलियों का जन्म हुआ है । इस भाषा में हजारों की संख्या में जैन आगम लिखे गए जो लगभग 2000 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन हैं । प्राकृत भाषा के विद्वानों और राजस्थान समग्र जैन युवा परिषद् की पिछले कई वर्षों से मांग थी कि इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा सरकार द्वारा दिया जाय ताकि इस भाषा का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके । विद्वानों और राजस्थान समग्र जैन युवा परिषद् के अनुरोध को स्वीकारते हुए भारत सरकार ने प्राकृत भाषा को शास्त्रीय दर्जा प्रदान करने की घोषणा  कर अल्पसंख्यक वर्ग के जैन समुदाय को तोहफा प्रदान किया है । इसके साथ साथ उन्होंने पाली,असमिया,मराठी,बंगला भाषा को भी शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है । 

  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की नेतृत्व वाली सरकार ने आरंभ से ही भारतीय भाषाओं के संरक्षण की मुहिम छेड़ रखी है । नई शिक्षा नीति में भी भारतीय भाषाओं को प्रमुखता प्रदान की गई है तथा अन्यान्य अनेक निर्णय इस पक्ष में लिए गए है ।

  प्राकृत भाषा में ही प्रकाशित होने वाली प्रथम पत्रिका पागद - भासा के संपादक प्रो अनेकांत कुमार जैन ने बताया कि प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध किया जा सकेगा कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के लिए व्यावसायिक पीठें बनाए और शास्त्रीय भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण के लिए रोजगार पैदा होगे l 

  इस अवसर पर राजस्थान समग्र जैन युवा परिषद् के अध्यक्ष जिनेन्द्र जैन ने बताया की प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से कई फायदे होगे खास तौर पर अकादमिक और शोध के क्षेत्रों में रोजगार के कई अवसर पैदा होगे और शास्त्रीय भाषाओं के प्रतिष्ठित विद्वानों के लिए हर साल दो प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाएंगे तथा शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए जाएंगे l 

  राजस्थान समग्र जैन युवा परिषद् के पदाधिकारियों और प्रो अनेकांत कुमार जैन ने भारत सरकार द्वारा प्राकृत भाषा शास्त्रीय भाषा घोषित करने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,अल्पसंख्यक कैबिनेट मंत्री किरेन रिजिजू राज्यमंत्री जॉर्ज कुरियन,राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा, उपाध्यक्ष एवं राजस्थान प्रभारी केरसी कैखुशरु देबू,सदस्य धन्य कुमार जिनप्पा गुंडे,रिनचेन लम्हो ,सैयद शहजादी का आभार प्रकट करते हुए उनका इस कार्य के लिए धन्यवाद ज्ञापित है ।



प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक कार्यक्रम 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा' में हिस्सा लिया.....

 


  मानगढ़ : प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज एक सार्वजनिक कार्यक्रम 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा' में हिस्सा लिया और स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों को उनके बलिदान के लिए नमन किया। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री ने धूनी दर्शन किए और गोविंद गुरु की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।

   सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मानगढ़ की पवित्र भूमि में आना हमेशा प्रेरक होता है जो हमारे जनजातीय वीरों की तपस्या, त्याग, बहादुरी और बलिदान का प्रतीक है। उन्होंने कहा, "मानगढ़ राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के लोगों की साझी विरासत है।" प्रधानमंत्री ने गोविंद गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनकी पुण्यतिथि 30 अक्टूबर को थी।

   गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, प्रधानमंत्री ने मानगढ़ के क्षेत्र के प्रति अपनी सेवा को याद किया जो गुजरात का हिस्सा है और बताया कि गोविंद गुरु ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष यहां बिताए, और उनकी ऊर्जा व उनकी शिक्षाएं अभी भी इस भूमि की मिट्टी में महसूस की जा सकती हैं। प्रधानमंत्री ने याद किया कि वन महोत्सव के मंच के माध्यम से सभी से आग्रह करने के बाद पूरा क्षेत्र हरा-भरा हो गया, जो पहले वीरान भूमि था। प्रधानमंत्री ने अभियान के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने के लिए आदिवासी समुदाय को धन्यवाद दिया।

   प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास से न केवल स्थानीय लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, बल्कि गोविंद गुरु की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार भी हुआ है। प्रधानमंत्री ने कहा, "गोविंद गुरु जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी भारत की परंपरा और आदर्शों के प्रतिनिधि थे।” उन्होंने कहा, “गोविंद गुरु ने अपना परिवार खो दिया लेकिन कभी अपना हौसल नहीं खोया और हर आदिवासी को अपना परिवार बनाया।" प्रधानमंत्री ने कहा कि एक और यदि गोविंद गुरु ने जनजातीय समुदाय के अधिकारों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, तो दूसरी ओर, उन्होंने अपने समुदाय की बुराइयों के खिलाफ भी अभियान चलाया, क्योंकि वे एक समाज सुधारक, आध्यात्मिक गुरु, एक संत और एक लोक-नेता थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका बौद्धिक व दार्शनिक पहलू उनके साहस और सामाजिक सक्रियता की तरह ही जीवंत था।

   मानगढ़ में 17 नवंबर, 1913 के नरसंहार को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा अत्यधिक क्रूरता का एक उदाहरण था। श्री मोदी ने कहा, "एक तरफ हमारे पास निर्दोष आदिवासी थे जो आजादी की मांग कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने मानगढ़ की पहाड़ियों को घेरकर दिन-दहाड़े एक हजार पांच सौ से अधिक निर्दोष युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों का नरसंहार किया।” प्रधानमंत्री ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के कारण स्वतंत्रता संग्राम की इतनी महत्वपूर्ण और प्रभावशाली घटना को इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिल पाई। प्रधानमंत्री ने कहा, "इस आजादी का अमृत महोत्सव में, भारत उस कमी को पूरा कर रहा है और दशकों पहले की गई गलतियों को सुधार रहा है।"

    प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि "भारत का अतीत, इतिहास, वर्तमान और भारत का भविष्य जनजातीय समुदाय के बिना कभी भी पूरा नहीं होता। हमारे स्वतंत्रता संग्राम की कहानी का हर पन्ना आदिवासी समुदाय की वीरता से भरा है।” प्रधानमंत्री ने 1780 के दशक के उस गौरवशाली संघर्ष को याद किया जब तिलका मांझी के नेतृत्व में संथाल संग्राम लड़ा गया था। उन्होंने 1830-32 के बारे में बताया जब देश ने बुधु भगत के नेतृत्व में लरका आंदोलन देखा। 1855 में सिद्धू-कान्हू क्रांति ने देश को ऊर्जा से भर दिया। भगवान बिरसा मुंडा ने अपनी ऊर्जा और देशभक्ति से सभी को प्रेरित किया। प्रधानमंत्री ने कहा, "आपको सदियों पहले गुलामी की शुरुआत से लेकर 20वीं सदी तक का कोई समय नहीं मिलेगा, जब जनजातीय समुदाय ने आजादी की लौ नहीं जलाई थी।" उन्होंने आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू का जिक्र किया। राजस्थान में इससे पहले भी आदिवासी समाज महाराणा प्रताप के साथ खड़ा था। प्रधानमंत्री ने कहा, “हम जनजातीय समुदाय के बलिदान के लिए उनके ऋणी हैं। इस समाज ने प्रकृति, पर्यावरण, संस्कृति और परंपराओं में भारत के चरित्र को संरक्षित किया है। आज देश के लिए उनकी सेवा करके उन्हें धन्यवाद देने का समय है।”

   प्रधानमंत्री ने बताया कि 15 नवंबर को देश भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने जा रहा है। उन्होंने कहा, "जनजातीय गौरव दिवस स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों के इतिहास के बारे में जनता को शिक्षित करने का एक प्रयास है।" श्री मोदी ने कहा कि जनजातीय समाज के इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए देश भर में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित विशेष संग्रहालय बनाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह शानदार विरासत अब विचार प्रक्रिया का हिस्सा बनेगी और युवा पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करेगी।

   प्रधानमंत्री ने देश में जनजातीय समाज की भूमिका का विस्तार करने के लिए समर्पित भावना के साथ काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि देश राजस्थान व गुजरात से लेकर पूर्वोत्तर और उड़ीसा तक देश के सभी हिस्सों में विविध जनजातीय समाज की सेवा के लिए स्पष्ट नीतियों के साथ काम कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वनबंधु कल्याण योजना के माध्यम से जनजातीय आबादी को पानी और बिजली कनेक्शन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, "आज देश में वन आवरण-क्षेत्र भी बढ़ रहा है और संसाधनों का संरक्षण किया जा रहा है। साथ ही, जनजातीय क्षेत्रों को भी डिजिटल इंडिया से जोड़ा जा रहा है।" प्रधानमंत्री ने एकलव्य आवासीय विद्यालयों के बारे में भी चर्चा की, जो पारंपरिक कौशल के साथ जनजातीय युवाओं को आधुनिक शिक्षा के अवसर प्रदान करते हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि वे गोविंद गुरु जी के नाम पर विश्वविद्यालय के भव्य प्रशासनिक परिसर का उद्घाटन करने के लिए जांबूघोडा जा रहे हैं।

   प्रधानमंत्री ने याद करते हुए कहा कि कल शाम ही उन्होंने अहमदाबाद-उदयपुर ब्रॉड गेज लाइन पर एक ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी। उन्होंने राजस्थान के लोगों के लिए 300 किलोमीटर की लाइन के महत्व के बारे में बताया क्योंकि यह गुजरात के कई जनजातीय क्षेत्रों को राजस्थान के जनजातीय क्षेत्रों से जोड़ेगी और इन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास एवं रोजगार को बढ़ावा देगी।


   मानगढ़ धाम के संपूर्ण विकास की चर्चा पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने मानगढ़ धाम के भव्य विस्तार की प्रबल इच्छा व्यक्त की। प्रधानमंत्री ने चार राज्यों- राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों से एक साथ मिलकर काम करने और एक रोडमैप तैयार करने के बारे में विस्तृत चर्चा करने का अनुरोध किया ताकि गोविंद गुरु जी के इस स्मारक स्थल को दुनिया के नक्शे पर जगह मिल सके। अंत में प्रधानमंत्री ने कहा, "मुझे विश्वास है कि मानगढ़ धाम का विकास इस क्षेत्र को नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का एक जागृत स्थल बना देगा।”

   इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल, राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान, मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल, केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल, केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री फग्गन सिंह कुलस्ते, सांसद, विधायक आदि उपस्थित थे।

पृष्ठभूमि

  आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में, सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों को याद करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें 15 नवंबर (जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती) को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में घोषित करना, समाज में जनजातीय लोगों के योगदान को मान्यता देने और स्वतंत्रता संग्राम में उनके बलिदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए देश भर में जनजातीय संग्रहालयों की स्थापना करना आदि शामिल हैं। इस दिशा में एक और कदम उठाते हुए, प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों के बलिदान के लिए उन्हें नमन करने के लिए राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ हिल में एक सार्वजनिक कार्यक्रम - 'मानगढ़ धाम की गौरव गाथा’ में भाग लिया। इस कार्यक्रम के दौरान, प्रधानमंत्री ने भील स्वतंत्रता सेनानी श्री गोविंद गुरु को नमन किया तथा भील आदिवासियों और क्षेत्र के अन्य जनजातीय आबादी की एक सभा को भी संबोधित किया।

  मानगढ़ पहाड़ी भील समुदाय और राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की अन्य जनजातियों के लिए विशेष महत्व रखती है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जहां भील और अन्य जनजातियों ने अंग्रेजों के साथ लंबे समय तक संघर्ष किया, 17 नवंबर, 1913 को श्री गोविंद गुरु के नेतृत्व में 1.5 लाख से अधिक भीलों ने मानगढ़ हिल पर रैली की। इस सभा पर अंग्रेजों ने गोलियां चलाईं, जिससे मानगढ़ नरसंहार हुआ जहां लगभग 1500 आदिवासी शहीद हुए।

समर्थ राष्ट्र और समरस समाज के लिए संवेदनशील न्याय व्यवस्था आवश्यक है : पीएम मोदी



   नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यानी शनिवार को कानून मंत्रियों और कानून सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया. 

   इस कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ,राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल, बैठक में शामिल तमाम राज्यों के कानून मंत्री, सचिव, इस अहम कॉन्फ्रेंस में उपस्थित अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों,

   देश के और सभी राज्यों के कानून मंत्रियों और सचिवों की ये अहम बैठक, स्टेचू ऑफ यूनिटी की भव्यता के बीच हो रही है। आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब लोकहित को लेकर सरदार पटेल की प्रेरणा, हमें सही दिशा में भी ले जाएगी और हमें लक्ष्य तक पहुंचाएगी।

साथियों,

   हर समाज में उस काल के अनुकूल न्याय व्यवस्था और विभिन्न प्रक्रियाएं-परंपराएं विकसित होती रही हैं। स्वस्थ समाज के लिए, आत्मविश्वास से भरे समाज के लिए, देश के विकास के लिए भरोसेमंद और त्वरित न्याय व्यवस्था बहुत ही आवश्यक है। जब न्याय मिलते हुए दिखता है, तो संवैधानिक संस्थाओं के प्रति देशवासियों का भरोसा मजबूत होता है। और जब न्याय मिलता है, तो देश के सामान्य मानवी का आत्मविश्वास भी उतना ही बढ़ता है। इसलिए, देश की कानून व्यवस्था को निरंतर बेहतर बनाने के लिए इस तरह के आयोजन बेहद अहम हैं।

साथियों,

   भारत के समाज की विकास यात्रा हजारों वर्षों की है। तमाम चुनौतियों के बावजूद भारतीय समाज ने निरंतर प्रगति की है, निरंतरता बनायी रखी है। हमारे समाज में नैतिकता के प्रति आग्रह और सांस्कृतिक परंपराएं बहुत समृद्ध हैं। हमारे समाज की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि वो प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए, खुद में आंतरिक सुधार भी करता चलता है। हमारा समाज अप्रासंगिक हो चुके कायदे-कानूनों, कुरीतियों, रिवाजों उसको हटा देता है, फेंक देता है। वर्ना हमने ये भी देखा है कि कोई भी परंपरा हो, जब वो रूढ़ी बन जाती है, तो समाज पर वो एक बोझ बन जाती है, और समाज इस बोझ तले दब जाता है। इसलिए हर व्यवस्था में निरंतर सुधार एक अपरिहार्य आवश्यकता होती है। आपने सुना होगा, मैं अक्सर कहता हूं कि देश के लोगों को सरकार का अभाव भी नहीं लगना चाहिए और देश के लोगों को सरकार का दबाव भी महसूस नहीं होना चाहिए। सरकार का दबाव जिन भी बातों से बनता है, उसमें अनावश्यक कानूनों की भी बहुत बड़ी भूमिका रही है। बीते 8 वर्षों में भारत के नागरिकों से सरकार का दबाव हटाने पर हमारा विशेष जोर रहा है। आप भी जानते हैं कि देश ने डेढ़ हजार से ज्यादा पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को रद्द कर दिया है। इनमें से अनेक कानून तो गुलामी के समय से चले आ रहे थे। Innovation और Ease of Living के रास्ते से कानूनी अड़चनों को हटाने के लिए 32 हजार से ज्यादा compliances भी कम किए गए हैं। ये बदलाव जनता की सुविधा के लिए हैं, और समय के हिसाब से भी बहुत जरूरी हैं। हम जानते हैं कि गुलामी के समय के कई पुराने कानून अब भी राज्यों में भी चल रहे हैं। आजादी के इस अमृतकाल में, गुलामी के समय से चले आ रहे कानूनों को समाप्त करके नए कानून आज की तारीख के हिसाब से बनाए जाना जरूरी है। मेरा आपसे आग्रह है कि इस कॉन्फ्रेंस में इस तरह के कानूनों की समाप्ति का रास्ता बनाने पर जरूर विचार होना चाहिए। इसके अलावा राज्यों के जो मौजूदा कानून हैं, उनकी समीक्षा भी बहुत मददगार साबित होगी। इस समीक्षा के फोकस में Ease of Living भी हो और Ease of Justice भी हो।

साथियों,

   न्याय में देरी एक ऐसा विषय है, जो भारत के नागरिकों की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। हमारी न्यायपालिकाएं इस दिशा में काफी गंभीरता से काम कर रही हैं। अब अमृतकाल में हमें मिलकर इस समस्या का समाधान करना होगा। बहुत सारे प्रयासों में, एक विकल्प Alternative Dispute Resolution का भी है, जिसे राज्य सरकार के स्तर पर बढ़ावा दिया जा सकता है। भारत के गांवों में इस तरह का mechanism बहुत पहले से काम करता रहा है। वो अपना तरीका होगा, अपनी व्यवस्थाएं होंगी लेकिन सोच यही है। हमें राज्यों में लोकल लेवेल पर इस व्यवस्था को समझना होगा, इसे कैसे लीगल सिस्टम का हिस्सा बना सकते हैं, इस पर काम करना होगा। मुझे याद है, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो हमने Evening Courts की शुरुआत की थी और देश में पहली Evening Court की वहां शुरुआत हुई। Evening Courts में ज्यादातर ऐसे मामले आते थे जो धाराओं के लिहाज से बहुत कम गंभीर होते थे। लोग भी दिन भर अपना काम-काज निपटाकर के, इन कोर्ट्स में आकर न्यायिक प्रक्रिया को पूरा करते थे। इससे उनका समय भी बचता था और मामले की सुनवाई भी तेज से होती थी। Evening Courts की वजह से गुजरात में बीते वर्षों में 9 लाख से ज्यादा केसों को सुलझाया गया है। हमने देखा है कि देश में त्वरित न्याय का एक और माध्यम लोक अदालतें भी बनी हैं। कई राज्यों में इसे लेकर बहुत अच्छा काम भी हुआ है। लोक अदालतों के माध्यम से देश में बीते वर्षों में लाखों केसों को सुलझाया गया है। इनसे अदालतों का बोझ भी बहुत कम हुआ है और खास तौर पर गांव में रहने वाले लोगों को, गरीबों को न्याय मिलना भी बहुत आसान हुआ है।

साथियों,

  आप में ज्यादा लोगों के पास संसदीय कार्य मंत्रालय का भी दायित्व होता है। यानि आप सभी कानून बनने की प्रक्रिया से भी काफी करीब से गुजरते हैं। मकसद कितना ही अच्छा हो लेकिन अगर कानून में ही भ्रम होगा, स्पष्टता का अभाव होगा, तो इसका बहुत बड़ा खामियाजा भविष्य में सामान्य नागरिकों को उठाना पड़ता है। कानून की क्लिष्टता, उसकी भाषा ऐसी होती है और उसकी वजह से, Complexity की वजह से, सामान्य नागरिकों को बहुत सारा धन खर्च करके न्याय प्राप्त करने के लिए इधर-उधर दौड़ना पड़ता है। इसलिए कानून जब सामान्य मानवी की समझ में आता है, तो उसका प्रभाव ही कुछ और होता है। इसलिए कुछ देशों में जब संसद या विधानसभा में कानून का निर्माण होता है, तो दो तरह से उसकी तैयारी की जाती है। एक है कानून की परिभाषा में technical शब्दों का प्रयोग करते हुए उसकी विस्तृत व्याख्या करना और दूसरा उस भाषा में कानून को लिखना और जो लोक भाषा में लिखना, उस देश का सामान्य मानवी को समझ आए, उस रूप में लिखना, मूल कानून के spirit को ध्यान में रखते हुए में लिखना। इसलिए कानून बनाते समय हमारा फोकस होना चाहिए कि गरीब से गरीब भी नए बनने वाले कानून को अच्छी तरह समझ पाए। कुछ देशों में ऐसा भी प्रावधान होता है कि कानून के निर्माण के समय ही ये तय कर दिया जाता है कि वो कानून कब तक प्रभावी रहेगा। यानि एक तरह से कानून के निर्माण के समय ही उसकी उम्र, उसकी एक्सपायरी डेट तय कर दी जाती है। ये कानून 5 साल के लिए है, ये कानून 10 साल के लिए है, तय कर लिया जाता है। जब वो तारीख आती है तो उस कानून की नई परिस्थितियों में फिर से समीक्षा होती है। भारत में भी हमें इसी भावना को लेकर आगे बढ़ना है। Ease of Justice के लिए क़ानूनी व्यवस्था में स्थानीय भाषा की भी बहुत बड़ी भूमिका है। मैं हमारी न्यायपालिका के सामने भी इस विषय को लगातार उठाता रहा हूँ। इस दिशा में देश कई बड़े प्रयास भी कर रहा है। किसी भी नागरिक के लिए कानून की भाषा बाधा न बने, हर राज्य इसके लिए भी काम करे। इसके लिए हमें logistics और infrastructure का support भी चाहिए होगा, और युवाओं के लिए मातृभाषा में अकैडमिक ecosystem भी बनाना होगा। Law से जुड़े कोर्सेस मातृभाषा में हों, हमारे कानून सहज-सरल भाषा में लिखे जाएं, हाइकोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण केसेस की डिजिटल लाइब्रेरी स्थानीय भाषा में हो, इसके लिए हमें काम करना होगा। इससे सामान्य मानवी में कानून को लेकर जानकारी भी बढ़ेगी, और भारी-भरकम कानूनी शब्दों का डर भी कम होगा।

साथियों,

  जब न्याय व्यवस्था समाज के साथ-साथ विस्तार लेती है, आधुनिकता को अंगीकार करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति उसमें होती ही है तो समाज में जो बदलाव आते है, वो न्याय व्यवस्था में भी दिखते हैं। टेक्नोलॉजी किस तरह से आज न्याय व्यवस्था का भी अभिन्न अंग बन गई है, इसे हमने कोरोना काल में भी देखा है। आज देश में e-Courts Mission तेजी से आगे बढ़ रहा है। 'वर्चुअल हियरिंग' और वर्चुअल पेशी जैसी व्यवस्थाएं अब हमारे लीगल सिस्टम का हिस्सा बन रही हैं। इसके अलावा, केस की e-filing को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। अब देश में 5G के आने से इन व्यवस्थाओं में और भी तेजी आएगी, और बहुत बड़े बदलाव इसके कारण अंतनिर्हित हैं, होने ही वाले हैं। इसलिए हर एक राज्य को इसे ध्यान में रखते हुये अपनी व्यवस्थाओं को update और upgrade करना ही पड़ेगा। हमारी legal education को टेक्नोलॉजी के हिसाब से तैयार करना भी हमारा एक महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए।

साथियों,

  समर्थ राष्ट्र और समरस समाज के लिए संवेदनशील न्याय व्यवस्था एक अनिवार्य शर्त होती है। इसीलिए, मैंने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की संयुक्त बैठक में अंडरट्रायल्स का विषय उठाया था। मेरा आप सबसे आग्रह है कि केसों के speedy trial के लिए राज्य सरकार द्वारा जो कुछ किया जा सकता है, वो जरूर करें। विचाराधीन कैदियों को लेकर भी राज्य सरकारें पूरे मानवीय दृष्टिकोण के साथ काम करें, ताकि हमारी न्याय व्यवस्था एक मानवीय आदर्श के साथ आगे बढ़े।

साथियों,

  हमारे देश की न्याय व्यवस्था के लिए संविधान ही सुप्रीम है। इसी संविधान की कोख से न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका, तीनों का ही जन्म हुआ है। सरकार हो, संसद हो, हमारी अदालतें हों, ये तीनों एक तरह से एक ही मां संविधान रूपी माता की संतान हैं। इसलिए कार्य भिन्न होने के बावजूद, अगर हम संविधान की भावना को देखें तो वाद-विवाद के लिए, एक दूसरे से होड़ के लिए कोई गुंजाइश नहीं रहती। एक मां की संतान की तरह ही तीनों को मां भारती की सेवा करनी है, तीनों को मिलकर 21वीं सदी में भारत को नई ऊंचाई पर ले जाना है। मुझे उम्मीद है कि इस कॉन्फ्रेंस में जो मंथन होगा, उससे देश के लिए legal reforms का अमृत जरूर निकलेगा। आप सबको मेरा आग्रह है कि समय निकालकर स्टेचू ऑफ यूनिटी और उसका पूरे परिसर में जो विस्तार और विकास हुआ है, उसको आप जरूर देखें। देश बहुत तेजी से आगे बढ़ने के लिए के अब तैयार है। आप के पास जो भी जिम्मेदारी है, उसको आप बखूबी निभाएं। यही मेरी आपको शुभकामना है। बहुत-बहुत धन्यवाद।

 

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने वीडियो संदेश के माध्यम से अयोध्या में लता मंगेशकर चौक के लोकार्पण के अवसर पर लोगों को संबोधित किया

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  प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने आज वीडियो संदेश के माध्यम से अयोध्या में लता मंगेशकर चौक के उद्घाटन के अवसर पर सभा को संबोधित किया।

  इस आयोजन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने प्रत्येक भारतीय की पूजनीय और स्नेह मूर्ति लता दीदी को उनके जन्मदिन पर याद किया। उन्होंने नवरात्रि उत्सव के तीसरे दिन का भी स्मरण किया जब मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब कोई साधक, साधिका कठोर साधना से गुजरते हैं, तो वे मां चंद्रघंटा की कृपा से दिव्य आवाजों को अनुभव करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, "लता जी मां सरस्वती की एक ऐसी साधिका थीं, जिन्होंने अपनी दिव्य आवाज से पूरी दुनिया को दंग कर दिया। लता जी ने साधना की और वरदान हम सभी को मिला!" श्री मोदी ने रेखांकित किया कि अयोध्या में लता मंगेशकर चौक पर स्थापित मां सरस्वती की विशाल वीणा, संगीत साधना का प्रतीक बनेगी। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि इस चौक परिसर में झील के बहते पानी में संगमरमर से बने 92 सफेद कमल लता जी के जीवन काल का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  प्रधानमंत्री ने इस अभिनव प्रयास के लिए उत्तर प्रदेश सरकार और अयोध्या विकास प्राधिकरण को बधाई दी और सभी देशवासियों की ओर से लता जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं भगवान श्री राम से प्रार्थना करता हूं कि लता जी के जीवन से हमें जो आशीर्वाद मिला है, वो उनके मधुर गीतों के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों पर अपनी छाप छोड़ता रहे।"

  लता दीदी के जन्मदिन से जुड़ी कई भावनात्मक और स्नेही यादों का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जब-जब उन्होंने बात की तो उनकी आवाज की चिर-परिचित मिठास ने सदा मंत्रमुग्ध किया। प्रधानमंत्री ने याद किया, "दीदी अक्सर मुझसे कहा करती थीं: 'मनुष्य को उम्र से नहीं बल्कि कर्मों से जाना जाता है, और वो जितना अधिक देश के लिए करता है, उतना ही बड़ा होता जाता है!" श्री मोदी ने आगे कहा, "मेरा मानना ​​है कि अयोध्या का लता मंगेशकर चौक और उनसे जुड़ी ऐसी सभी यादें हमें राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की भावना महसूस कराएंगी।"

  जब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन हुआ था तो उसके बाद प्रधानमंत्री को लता दीदी का फोन आया था, उसे याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि लता दीदी ने बहुत खुशी व्यक्त की कि आखिरकार ये विकास कार्य चालू हो गया। प्रधानमंत्री ने लता दीदी द्वारा गाए एक भजन 'मन की अयोध्या तब तक सूनी, जब तक राम न आए' को याद किया और अयोध्या के भव्य मंदिर में भगवान श्री राम के आसन्न आगमन पर टिप्पणी की। प्रधानमंत्री ने कहा कि करोड़ों लोगों के बीच राम की स्थापना करने वाली लता दीदी का नाम अब पवित्र नगरी अयोध्या से स्थायी रूप से जुड़ गया है। राम चरित मानस को उद्धृत करते हुए प्रधानमंत्री ने "राम ते अधिक, राम कर दास" का पाठ किया, जिसका अर्थ है कि भगवान राम के भक्त भगवान के आगमन से पहले पहुंच जाते हैं। इसलिए उनकी याद में बना लता मंगेशकर चौक, भव्य मंदिर के पूरा होने से पहले ही बन गया है।

  अयोध्या की गौरवशाली विरासत की पुन: स्थापना और शहर में विकास की नई सुबह पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की कि भगवान राम हमारी सभ्यता के प्रतीक हैं और हमारी नैतिकता, मूल्यों, गरिमा और कर्तव्य के जीवंत आदर्श हैं। श्री मोदी ने कहा, "अयोध्या से रामेश्वरम तक, भगवान राम भारत के कण-कण में समाए हुए हैं।" प्रधानमंत्री ने कहा कि भगवान राम के आशीर्वाद से मंदिर के निर्माण की गति को देखकर पूरा देश उत्साहित है।

  प्रधानमंत्री ने प्रसन्नता व्यक्त की कि लता मंगेशकर चौक का विकास स्थल दरअसल अयोध्या में सांस्कृतिक महत्व के विभिन्न स्थानों को जोड़ने वाले प्रमुख स्थलों में से एक है। ये चौक राम की पैड़ी के पास स्थित है और सरयू की पवित्र धारा के करीब है। प्रधानमंत्री ने कहा, "लता दीदी के नाम पर चौक बनाने के लिए इससे बेहतर जगह और क्या हो सकती है?" इतने कल्पों के बाद भी जिस तरह से अयोध्या ने भगवान राम को धारण किया हुआ है, उसका उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि लता दीदी के भजनों ने हमारी अंतरात्मा को भगवान राम में डुबोए रखा है।

  चाहे मानस मंत्र 'श्री रामचंद्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणम' हो, या मीराबाई का 'पायो जी मैंने राम रतन धन पायो' जैसा भजन हो; बापू का पसंदीदा 'वैष्णव जन' हो, या 'तुम आशा विश्वास हमारे राम' जैसी मधुर धुन हो, इन सबने लोगों के मन में अपनी जगह बनाई हो। प्रधानमंत्री ने कहा कि कई देश वासियों ने लता जी के गीतों के माध्यम से भगवान राम का अनुभव किया है। श्री मोदी ने कहा, "हमने लता दीदी के दिव्य कंठ के माध्यम से भगवान राम के अलौकिक राग का अनुभव किया है।"

  प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि लता दीदी की आवाज में 'वंदे मातरम' की पुकार सुनते ही हमारी आंखों के सामने भारत माता का विशाल रूप उमड़ने लगता है। प्रधानमंत्री ने आगे कहा, "जिस तरह लता दीदी हमेशा नागरिक कर्तव्यों के प्रति बहुत जागरूक थीं, उसी तरह ये चौक अयोध्या में रहने वाले लोगों और अयोध्या आने वाले लोगों को भी कर्तव्य के प्रति समर्पण के लिए प्रेरित करेगा।" उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि "ये चौक, ये वीणा अयोध्या के विकास और अयोध्या की प्रेरणा को और प्रतिध्वनित करेंगे।" श्री मोदी ने रेखांकित किया कि लता दीदी के नाम पर बना ये चौक कला जगत से जुड़े लोगों के लिए प्रेरणा स्थल का काम करेगा। ये सभी को याद दिलाएगा कि आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए और अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए हमें भारत की कला और संस्कृति को दुनिया के कोने-कोने तक ले जाना है। श्री मोदी ने कहा, "भारत की कला और संस्कृति को दुनिया के कोने-कोने तक ले जाना हमारा कर्तव्य है।"

 अपने संबोधन के समापन में प्रधानमंत्री ने जोर दिया कि हमें जिम्मेदारी लेने की जरूरत है ताकि हम भारत की हजार साल पुरानी विरासत पर गर्व करते हुए आने वाली पीढ़ियों के हाथों में भारत की संस्कृति को सौंप सकें। उन्होंने कहा, "लता दीदी के स्वर आने वाले युगों-युगों तक इस देश के कण-कण को ​​​​जोड़े रखेंगे।"


प्रधानमंत्री ने भुज में लगभग 4400 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया

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  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज भुज में लगभग 4400 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इससे पहले, उन्होंने भुज जिले में स्मृति वन स्मारक का भी उद्घाटन किया।

  सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि भुज में स्मृति वन स्मारक और अंजार में वीर बाल स्मारक गुजरात के कच्छ जिले और पूरे देश के साझा दर्द के प्रतीक हैं। उन्होंने उस पल को याद किया जब अंजार स्मारक की अवधारणा सामने आई और स्वैच्छिक कार्य 'कार सेवा' के माध्यम से स्मारक को पूरा करने संकल्प लिया गया था। उन्होंने कहा कि इन स्मारकों को विनाशकारी भूकंप में मारे गए लोगों की याद में भारी मन से समर्पित किया जा रहा है। उन्होंने आज लोगों के गर्मजोशी से स्वागत के लिए भी उन्हें धन्यवाद दिया।

  उन्होंने आज अपने दिल में उतरी अनेक भावनाओं को याद किया और पूरी विनम्रता के साथ कहा कि दिवंगत आत्माओं की स्मृति में, स्मृति वन स्मारक 9/11 स्मारक और हिरोशिमा स्मारक के बराबर है। उन्होंने लोगों और स्कूली बच्चों से स्मारक का दौरा करते रहने को कहा ताकि प्रकृति का संतुलन और व्यवहार सबके लिए साफ रहे।

  प्रधानमंत्री ने विनाशकारी भूकंप की पूर्व संध्या को याद किया। उन्होंने कहा "मुझे याद है जब भूकंप आया था तो उसके दूसरे दिन ही मैं यहां पहुंच गया था। तब मैं मुख्यमंत्री नहीं था, साधारण सा कार्यकर्ता था। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे और कितने लोगों की मदद कर पाऊंगा। लेकिन मैंने ये तय किया कि दु: की इस घड़ी में, मैं यहां आप सबके बीच में रहूँगा। और जब मैं मुख्यमंत्री बना तो सेवा के अनुभव ने मेरी बहुत मदद की।'' उन्होंने क्षेत्र के साथ अपने गहरे और लंबे जुड़ाव को याद किया, और उन लोगों को याद किया और श्रद्धांजलि अर्पित की जिनके साथ उन्होंने संकट के दौरान काम किया।

   प्रधानमंत्री ने आगे कहा, " कच्छ की एक विशेषता तो हमेशा से रही है, जिसकी चर्चा मैं अक्सर करता हूं। यहां रास्ते में चलते-चलते भी कोई व्यक्ति एक सपना बो जाए तो पूरा कच्छ उसको वटवृक्ष बनाने में जुट जाता है। कच्छ के इन्हीं संस्कारों ने हर आशंका, हर आकलन को गलत सिद्ध किया। ऐसा कहने वाले बहुत थे कि अब कच्छ कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा। लेकिन आज कच्छ के लोगों ने यहां की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है।उन्होंने याद किया कि भूकंप के बाद पहली दिवाली, लोगों के प्रति एकजुटता व्यक् करने के लिए उन्होंने और उनके राज्य मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने क्षेत्र में बिताई। उन्होंने कहा कि चुनौती की उस घड़ी में, हमने घोषणा की कि हम आपदा को अवसर ('आपदा से अवसर') में बदल देंगे।जब मैंने लाल किले की प्राचीर से कहा कि भारत 2047 तक, एक विकसित देश होगा, आप देख सकते हैं कि मृत्यु और आपदा के बीच, हमने कुछ संकल्प किए और उन्हें आज हमने उन्हें हकीकत में बदला। इसी तरह, आज हम जो संकल्प लेंगे, उसे 2047 में निश्चित रूप से हकीकत में बदल देंगे।'

   2001 में पूरी तरह से तबाही मचने के बाद किए गए अविश्वसनीय कार्यों पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि 2003 में कच्छ में क्रांतिगुरु श्यामजी कृष्णवर्मा विश्वविद्यालय का गठन किया गया था, जबकि 35 से अधिक नए कॉलेज भी स्थापित किए गए हैं। उन्होंने भूकंपरोधी जिला अस्पतालों और क्षेत्र में कार्य कर रहे 200 से अधिक क्लीनिकों के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि हर घर को पवित्र नर्मदा का साफ पानी मिलता है, जो पानी की कमी के दिनों में बहुत दूर की बात थी। उन्होंने क्षेत्र में जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के कदमों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि कच्छ के लोगों के आशीर्वाद से, सभी प्रमुख क्षेत्रों को नर्मदा के पानी से जोड़ दिया गया है। उन्होंने कहा, "कच्छ भुज नहर क्षेत्र के लोगों और किसानों को लाभान्वित करेगी" उन्होंने कच्छ को पूरे गुजरात का नंबर एक फल उत्पादक जिला बनने के लिए बधाई दी। उन्होंने पशु पालन और दूध उत्पादन में अभूतपूर्व प्रगति करने के लिए लोगों की सराहना की। उन्होंने कहा, "कच्छ ने केवल खुद को उठाया है बल्कि पूरे गुजरात को नई ऊंचाइयों पर ले गया है"

   प्रधानमंत्री ने उस समय को याद किया जब गुजरात एक के बाद एक संकट से जूझ रहा था। उन्होंने कहा, "जब गुजरात प्राकृतिक आपदा से निपट रहा था, तब साजिशों का दौर शुरू हो गया था। देश और दुनिया में गुजरात को बदनाम करने के लिए, यहां निवेश को रोकने के लिए एक के बाद एक साजिशें की गईं। ऐसी स्थिति में भी एक तरफ गुजरात देश में आपदा प्रबंधन कानून बनाने वाला पहला राज्य बना। इस कानून ने महामारी के दौरान देश की हर सरकार की मदद की" उन्होंने कहा कि गुजरात को बदनाम करने के सभी प्रयासों की अनदेखी करना जारी रखा और षड्यंत्रों को धता बताते हुए गुजरात ने एक नया औद्योगिक मार्ग निकाला, कच्छ को उसका सबसे अधिक लाभ मिला।

 उन्होंने कहा कि कच्छ में आज दुनिया का सबसे बड़ा सीमेंट संयंत्र है। वेल्डिंग पाइप निर्माण के मामले में कच्छ दुनिया में दूसरे स्थान पर है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा संयंत्र कच्छ में है। एशिया का पहला एसईजेड कच्छ में बना है। कांडला और मुंद्रा बंदरगाह भारत के कार्गो का 30 प्रतिशत संभालते हैं और यह देश के लिए 30 प्रतिशत नमक का उत्पादन करता है। कच्छ सौर और पवन ऊर्जा से उत्पन्न 2500 मेगावाट बिजली का उत्पादन करता है और कच्छ में सबसे बड़ा सौर हाइब्रिड पार्क बनने वाला है। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि देश में आज जो ग्रीन हाउस अभियान चल रहा है, उसमें गुजरात की बहुत बड़ी भूमिका है। इसी तरह जब गुजरात, दुनिया भर में ग्रीन हाउस कैपिटल के रूप में अपनी पहचान बनाएगा, तो उसमें कच्छ का बहुत बड़ा योगदान होगा।

   पंच प्रण में से एक-अपनी विरासत पर गर्व को याद करते हुए, जिसे उन्होंने लाल किले की प्राचीर से घोषित किया था, प्रधानमंत्री ने कच्छ की खुशहाली और समृद्धि पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने धौलावीरा की इमारतों के निर्माण की विशेषज्ञता पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा, "नगर निर्माण को लेकर हमारी विशेषज्ञता धौलावीरा में दिखती है। पिछले वर्ष ही धौलावीरा को वर्ल्ड हैरिटेज साइट का दर्जा दिया गया है। धौलावीरा की एक-एक ईंट हमारे पूर्वजों के कौशल, उनके ज्ञान-विज्ञान को दर्शाती है।" इसी तरह, लंबे समय तक उपेक्षित स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करना भी किसी की विरासत पर गर्व करने का हिस्सा है। उन्होंने श्यामजी कृष्ण वर्मा के अवशेषों को वापस लाने की सुविधा की चर्चा की। उन्होंने कहा, मांडवी में स्मारक और स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भी इस संबंध में बड़े कदम हैं।

   प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि कच्छ का विकास 'सबका प्रयास' के साथ एक सार्थक बदलाव का एक आदर्श उदाहरण है। प्रधानमंत्री ने कहा,“कच्छ सिर्फ एक स्थान नहीं है, बल्कि ये एक स्पिरिट है, एक जीती-जागती भावना है। ये वो भावना है, जो हमें आज़ादी के अमृतकाल के विराट संकल्पों की सिद्धि का रास्ता दिखाती है।

  इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र पटेल, सांसद श्री सी. आर. पाटिल और श्री विनोद एल. चावड़ा, गुजरात विधानसभा अध्यक्ष डॉ. निमाबेन आचार्य, राज्य मंत्री किरीटसिंह वाघेला और जीतूभाई चौधरी उपस्थित थे।

परियोजनाओं का विवरण

  प्रधानमंत्री ने भुज जिले में स्मृति वन स्मारक का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री द्वारा परिकल्पित, स्मृति वन अपनी तरह की एक अनूठी पहल है। इसे 2001 के भूकंप के दौरान अपनी जान गंवाने वाले लगभग 13,000 लोगों की मौत के बाद लोगों द्वारा दिखाई गई लचीलेपन की भावना का जश्न मनाने के लिए लगभग 470 एकड़ के क्षेत्र में बनाया गया है। भूकंप का केन्द्र भुज में था। इस स्मारक में उन लोगों के नाम हैं जिन्होंने भूकंप के दौरान अपनी जान गंवाई थी।

  अत्याधुनिक स्मृति वन भूकंप संग्रहालय सात विषयों: पुनर्जन्म, पुन:खोज, पुनर्स्थापना, पुनर्निर्माण, पुनर्विचार, पुन: जीवित और नवीनीकरण पर आधारित सात खंडों में विभाजित है। पहला खंड पृथ्वी के विकास और पृथ्वी की क्षमता को दर्शाने वाले पुनर्जन्म विषय पर आधारित है। दूसरा खंड गुजरात की भौगोलिक स्थिति और राज् की दृष्टि से अतिसंवेदनशील विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं को प्रदर्शित करता है। तीसरा खंड किसी को भी 2001 के भूकंप के तुरंत बाद के परिणामों की ओर ले जाता है। इस खंड की गैलरियों में व्यक्तियों के साथ संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए राहत प्रयासों को दिखाया गया है। चौथा खंड 2001 के भूकंप के बाद गुजरात की पुनर्निर्माण पहल और सफलता की कहानियों को प्रदर्शित करता है। पांचवां खंड आगंतुक को विभिन्न प्रकार की आपदाओं के बारे में सोचने और उनसे सीखने तथा किसी भी समय किसी भी प्रकार की आपदा के लिए भविष्य में तैयार रहने के लिए प्रेरित करता है। छठा खंड हमें एक सिम्युलेटर की मदद से भूकंप का फिर से अनुभव लेने में मदद करता है। अनुभव को 5डी सिम्युलेटर में डिज़ाइन किया गया है और इसका उद्देश्य आगंतुक को इस स्केल पर एक घटना की जमीनी हकीकत बताना है। सातवां खंड लोगों को एक ऐसी जगह प्रदान करता है जहां वे खोए हुए लोगों को याद करते हुए दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं।

  प्रधानमंत्री ने भुज में लगभग 4400 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। प्रधानमंत्री ने सरदार सरोवर परियोजना की कच्छ शाखा नहर का भी उद्घाटन किया। नहर की कुल लंबाई लगभग 357 किमी है। नहर के एक हिस्से का प्रधानमंत्री ने 2017 में उद्घाटन किया था और शेष भाग का उद्घाटन अभी किया जा रहा है। नहर कच्छ में सिंचाई की सुविधा और कच्छ जिले के सभी 948 गांवों और 10 कस्बों में पेयजल उपलब्ध कराने में मदद करेगी। प्रधानमंत्री कई अन्य परियोजनाओं का भी उद्घाटन करेंगे जिनमें सरहद डेयरी का नया स्वचालित दूध प्रसंस्करण और पैकिंग प्लांट; क्षेत्रीय विज्ञान केन्द्र, भुज; गांधीधाम में डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर कन्वेंशन सेंटर; अंजार में वीर बाल स्मारक; नखतराना में भुज 2 सबस्टेशन आदि शामिल हैं। प्रधानमंत्री भुज-भीमासर रोड सहित 1500 करोड़ रुपये से अधिक की विभिन्न परियोजनाओं की भी आधारशिला रखेंगे।